एकल शिक्षक सुमन प्रधान की संदिग्ध मौत ।वजह _एक्सीडेंट या फिर अतिरिक्त कार्य-दबाव? पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार!
गरियाबंद। गरियाबंद जिले मैनपुर ब्लॉक के कांडसर माध्यमिक विद्यालय में पदस्थ एकल शिक्षक सुमन प्रधान की बीती रात अचानक मौत हो गई। उनकी मौत का कारण फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन प्रारंभिक चिकित्सा जांच में यह आशंका व्यक्त की गई है कि हाल ही में हुए एक्सीडेंट में सिर में आई चोट इसके पीछे मुख्य वजह हो सकती है। वहीं दूसरी तरफ बीएलओ एस आई आर कार्य का अतिरिक्त दबाव भी चर्चा का विषय बन गया है।
करीब डेढ़ सौ से दो सौ बच्चों वाले माध्यमिक विद्यालय में सुमन प्रधान एकल शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। स्कूल की पूरी शैक्षणिक जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। इसके अलावा सरकार की तरफ से गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने का दबाव और साथ में एस आई आर एवं बीएलओ कार्य ने उनका कार्यभार कई गुना बढ़ा दिया था। बताया जाता है कि सुमन प्रधान खुद SIR कार्य का केवल 2% ही पूरा कर पाए थे, जबकि क्षेत्र के अन्य बीएलओ 20–30% तक कार्य कर चुके थे। इससे शिक्षकों के बीच यह चर्चा तेज है कि क्या बढ़ते दबाव ने उनकी हालत को और बिगाड़ दिया?
कुछ दिन पहले सुमन प्रधान का एक्सीडेंट हुआ था जिसमें उनके सिर और शरीर के अन्य हिस्सों में चोटें आई थीं। परिजनों और सहकर्मियों के मुताबिक, वे जल्द ही रायपुर जाकर सी.टी.स्कैन सहित आगे का उपचार करवाना चाहते थे। लेकिन बीती रात अचानक उनकी तबीयत गंभीर रूप से बिगड़ गई। परिजन उन्हें तुरंत देवभोग के सरकारी अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सुबह देभोग स्वास्थ्य केंद्र में पोस्टमार्टम किया गया। प्राथमिक जांच में डॉक्टरों ने बताया कि सिर के अंदर पुराना रक्त जमा हुआ था, जो संभवतः एक्सीडेंट के बाद ब्रेन में ब्लीडिंग से संबंधित हो सकता है। यही कारण आगे चलकर उनकी मौत का कारण बना हो—हालांकि यह केवल प्राथमिक अनुमान है और अंतिम निष्कर्ष पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही सामने आएगा।
इस बीच बीएलओ-एस.आई.आर कार्य के बोझ को लेकर पूरे जिले में फिर से बहस शुरू हो गई है। जगदलपुर और कोंडागांव में भी हाल के दिनों में बीएलओ-एस .आई. आर. कार्य के दबाव को मौत से जोड़कर देखा गया है, जिससे मामला और संवेदनशील हो गया है।
हमारे न्यूज रिलीज़ मीडिया के प्रतिनिधियों ने जब क्षेत्र के कुछ बी.एल.ओ से बातचीत की तो उनका कहना था कि “प्रेशर हर काम का होता है, लेकिन अगर कार्य को सही रणनीति और समर्पण से किया जाए तो तनाव कम रहता है। हम ग्रुप में भी लगातार सभी बी.एल.ओ. को अनावश्यक तनाव न लेने और व्यवस्थित तरीके से काम करने की सलाह देते रहे हैं।”
फिर भी सच्चाई यह है कि एकल शिक्षक प्रणाली, 200 बच्चों की पढ़ाई, रोज-रोज के सर्वे, और समय सीमा में पूरा करने का दबाव—ये सभी वास्तविक चुनौतियाँ हैं जिन्हें नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सुमन प्रधान जैसे शिक्षक जब बी.एल.ओ./एस.आई.आर. कार्य में व्यस्त थे, तब विद्यालय में बच्चे शिक्षकों के अभाव में बिना पढ़ाई के वापस लौट जाते थे।
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है—क्या एकल शिक्षक पर इतने अतिरिक्त कार्य डालना उचित है? क्या शिक्षा की गुणवत्ता इन्हीं दबावों के बीच संभव है? और आखिर सुमन प्रधान की मौत में कितना योगदान एक्सीडेंट का था और कितना कार्य-दबाव का?
इन सवालों का स्पष्ट उत्तर पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मिल सकेगा। फिलहाल क्षेत्र में शिक्षक समुदाय शोक और चिंता दोनों में है।














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